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आओ!! ”स्वप्न-संसार” के रहस्य को समझे!

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एक रात मैंने स्वप्न देखा कि चार युवक किसी ‘युवक’ को अपने ‘कन्धों’ पर ले जा रहे हैं। स्वप्न की ”गहरार्इ” (depth) से मुझे उसके सच होने की संभावना लग रही थी। मैं इस स्वप्न को देखकर डर गया था। क्योंकि चार कन्धों पर आदमी कब जाता है, इस बात को हम सब जानते हैं! मैं परेशान था, पता नहीं, मैं किसे चार कन्धों पर जाते देखूंगा। र्इश्वर! का स्मरण करते-करते मैं विधालय आ गया। जहां पर बच्चे गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम की रिहर्सल कर रहे थे। एक नाटक की रिहर्सल में मैंने देखा कि चार बच्चे एक बच्चे को कन्धे पर ‘मुर्दे’ की तरह लाते हैं। मैं इस दृश्य को देखकर एकदम ‘सिहर’ उठा। तभी मुझे रात के स्वप्न की याद आ गयी।

भविष्य के पूर्वाभास वाले स्वप्न हर किसी को दिखार्इ दे जाते हैं, उनकी सत्यता देखकर हम आश्चर्य चकित हो जाते हैं। मेरे पास ऐसे सपनों की सूची है, जो सत्य हुए। पाठकजनों मैं ये बात बता कर, स्वयं को भविष्य (स्वप्न) द्रष्टा सिद्ध नहीं करना चाहता, क्याेंकि मेरे स्वप्न झूठे भी होते हैं। मैं केवल ये बताना चाहता हूँ कि ये स्वप्न हर कोर्इ देख सकता है। केवल उसके लिए दो बातों की आवश्यकता होती हैै। पहली घटना विशेष के प्रति ”संवेदनशीलता” तथा दूसरा सुदूर अंतरिक्ष के गर्भ में पक रहे ”भविष्य” के प्रति तदात्म स्थापित कर सकने वाला ‘आत्मिक स्तर’। आत्मिक स्तर ध्यान, जप, तप के साथ-साथ पूर्व जन्म के संस्कारों द्वारा ”व्यक्ति विशेष” में भिन्न-भिन्न हो सकता है और प्रयास द्वारा उसे घटाया-बढाया भी जा सकता है। ”संवेदनशीलता” से मेरा तात्पर्य है कि जैसे हम अपने स्वजनों (माता-पिता, भार्इ, बहन, पति-पत्‍नी, बच्चों) के प्रति अत्यंत ‘संवेदनशील’ होते हैं। इनको मिलने वाले ‘सुख’ जहां हमारे ह्दय को ‘प्रफुल्लित’ कर देते हैं वही इनके ‘दुख’ हमारे ह्दय को ‘झकझोर’ देते हैं। किसी को दुर्घटना से, किसी को आग-पानी से और किसी को ऊंचार्इ से जबरदस्त घबराहट होती है। यही ‘व्यक्ति विशेष’ या ‘घटना विशेष’ के प्रति ‘संवेदनशीलता’ है। जिसके प्रति हमारा ‘मन’ इतना सजग होता है कि वर्तमान ही नहीं वरन भविष्य में घटने वाली घटनाओं को भी सपनों के माध्यम से ”हमें” इनका ‘पूर्वाभास’ करा देता है।

एक बार एक युवती ”स्वप्न विज्ञान” पर एक गोष्ठी के बाद ”स्वप्न जिज्ञासा” लेकर मेरे पास आयी, उसने मुझे बताया कि जब भी मैं अपने ‘ब्वाय फ्रेड’ से मिलती हूँ, बातचीत?? करती हूँ। मेरी मम्मी को इसके बारे में स्वप्न में पूर्वाभास कैसे हो जाता है? पाठकजनों! युवती ने मुझे बताया- मेरी मम्मी को अपने ‘स्वप्न’ की सत्यता पर विश्वास नहीं है। बल्कि मुझ (बेटी) पर विश्वास है, कि उसका कोर्इ ब्वाय फ्रेंड नहीं है! केवल मैं (युवती) ही सच्चार्इ जानती हूँ।
स्वजनों‘ के प्रति हमारी संवेदनशीलता की उपरोक्त बातें मेरे तथ्य की पुष्टि करती हैैं, परन्तु ‘भविष्यानुभूति’ हमारे ‘आत्मिक स्तर’ के अनुसार होती है। किसी स्वजन को कोर्इ हानि (मृत्यु-दुर्घटना आदि) होती है तो हमें अनहोनी घटना के पहले से ही बुरे-बुरे स्वप्न दिखार्इ देने लगते हैं।

स्वप्न गहरी निद्रा में नहीं दिखार्इ देते। बल्कि ये जाग्रत और निद्रा के बीच की अवस्था  में दिखार्इ देते हैं। गहरी निद्रा को ‘सुषप्ति’ भी कहते हैं, यह इतनी गहरी होती है कि इसमें ‘मस्तिष्कीय तन्तु’ पूरी तरह निश्चेष्ट हो जाते हैं। इस स्थिति में कोर्इ स्वप्न नहीं आता। ‘तंद्रावस्था’ या ‘बीच की अवस्था’ में ही ‘अंर्तमन’ सक्रिय रहता है और हम स्वप्न देखते हैं।
हम सपनों को तीन भागों में बांट सकते हैं-1-शारीरिक दशाओं के स्वप्न। 2-मानसिक स्थिति के स्वप्न। 3-आध्यात्मिक स्वप्न।

बुखार, नजला, अपच, शीतोष्ण का आधिक्य तथा सोते समय का वातावरण आदि के समय देखे गये स्वप्न, प्रथम श्रेणी के स्वप्न के अन्तर्गत आते हैं। बुखार आने से पहलेे शरीर में दर्द प्रारम्भ हो जाता है, उल्टी से पहले जी मिचलाता है, प्रसव से पहले पेट में पीड़ा होती है, फल आने से पहले फूल आने लगता है। इसी प्रकार कोर्इ ‘घटना’ अपने ‘वास्तविक स्वरूप’ में आने से पहले ‘अंतरिक्ष’ में विकसित होने लगती है। इसी प्रकार स्वप्न में भी ‘घटना विशेष’ का मानसिक खाका पहले ही तैयार होने लगता है। इन स्वप्नों के बार-बार दिखने पर ‘योग्य चिकित्सक’ से परामर्श लेना चाहिए।
दूसरी श्रेणी के स्वप्न स्वयं की मानसिक स्थिति के अनुसार दिखते हैं, जो मन के विकार मात्र हैं। इनका स्वप्न द्वारा ज्ञान तो हो सकता है, परन्तु निदान, मनोचिकित्सक द्वारा, उसके स्वप्नों का अध्ययन करके ही किया जा सकता है। ‘स्वप्न द्रष्टा’ को जब यह ज्ञात हो जाता है कि उसका ”रोग” स्वयं उसकी मानसिक विकृतियों का परिणाम हैं, तो यदि वह प्रयास करें तो उसे दूर करने में ज्यादा समय नहीं लगता।
तीसरे प्रकार के आध्यात्मिक स्वप्न वे होते हैं जो ‘अतीन्द्रिय अनुभूतियों’ से संबंधित होते हैं। जिनका वर्णन में प्रारम्भ में ही कर चुका हूं। ”गायत्री-मंत्र’‘ साधकों के स्वप्न इसी स्तर के हो सकते हैं।
‘स्वप्न मनौवैज्ञानिकों’ का कहना है कि, सर्दी-जुकाम, फोड़े-फुन्सी जैसे शारीरिक विक्षेभों की सूचना 1-2 दिन पूर्व, तपैदिक, कैंसर जैसे भयानक रोगों के आगमन की सूचना 2-3 माह पूर्व स्वप्नों द्वारा मिल जाती है। परन्तु सामान्यत: रोगी इन ”प्रतिकात्मक” सूचनाओं को समझ नहीं पाता, या फिर जागने पर भूल जाता है।

जिस प्रकार ‘स्थूल जीवन’ अनेक ज्ञान-विज्ञान की जटिलताओं से भरा हुआ है। उसी प्रकार हमारा ‘सूक्ष्म-शरीर’ अनेक रहस्यों को अपने में समेटे हुए है। स्वप्नों का संसार भी ऐसा ही जटिल और उलझा हुआ विषय है, जैसा कि स्थूल जीवन।
”जिंन्दगी” की समस्याऐं सुलझाने के लिए संसार क्षेत्र में विचरण करना पडता है, वहीं ”अंतर्जगत” की गुथियाँ हम ”स्वप्न के संसार” में प्रवेश करके ही सुलझा सकते हैं और अपने जीवन को उन्नत व सफल बना सकते हैं।

अंत में ‘मुनीर’ साहब की एक ‘रूबार्इ’ के साथ ‘ब्लॉग’ समाप्त करता हूं-
कोर्इ  है  शीशा  व  शराब  में  मस्त,
कोर्इ  है   लज्जते-शबाब   में  मस्त
मुब्तला   हैं    सभी   कहीं  न  कहीं
मैं भी हूं अपने एक ‘ख्वाब’ में मस्त।

जानें सपनों का भाषा?”फिर किसी ‘ब्लॉग’ में!

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