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”बाबर” की रगों में ”हिन्दू” का खून है!

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blood6.jpegघटना कुछ दिन पहले की है। मैं अपने शहर के ही एक बड़े हॉस्पिटल में अपने बेटे की मेडिकल रिपोर्ट लेने गया था। रिपोर्ट लेने के बाद मैं वापस आ ही रहा था कि मैंने देखा कि हॉस्पिटल के ‘ब्लड बैंक’ के पास से काफी जोर-जोर से रोने की आवाजें आ रही हैं। मैं जिज्ञासा वश उस तरफ बढ़ा। देखा कि एक मुस्लिम महिला जोर-जोर से रो रही थी, उसके साथ खड़े युवकों की आंखें भी नम थी। वे महिला को सम्भालने की कोशिश कर रहे थे।
मैंने आगे बढ़ कर एक युवक से पूछा! तो पता चला कि उस युवक का भार्इ एक्सीडेन्ट में गंभीर रूप से घायल हो गया है और उसे तत्काल ब्लड की आवश्यकता है जबकि ‘ब्लड बैंक’ में उस ग्रुप का ब्लड ही नहीं है।
मैंने कहा कि आप का ब्लड तो आपके भार्इ के ब्लड से मैच करता होगा, आप अपना ब्लड क्यों नहीं दे देते?
उसने कहा अभी 10 दिन पहले, हम तीनों भाइयों ने अपनी बहन को ब्लड दिया था, जो कि ‘किडनी डेमेज’ होने के कारण चल बसी थी। इसी कारण डाक्टर ने हम भाइयों का ब्लड लेने से मना कर दिया है।

मैंने उससे, उसके जख्मी भार्इ का ‘ब्लड ग्रुप’ पूछा, जो मेरे ‘ब्लड ग्रुप’ से मैच कर रहा था!
मैंने उससे कहा-मेरा भी यही ‘ब्लड ग्रुप‘ है और मैं ‘ब्लड डोनेट’ के लिए तैयार हूँ! मेरी बात सुनकर उन सब के चेहरे खिल गये, मां के मुंह से आशीषे व भार्इयों के चेहरों पर कृतज्ञता के भाव थे।
”मैं” स्वयं और मेरी ”बुद्धि” अपने इस निर्णय पर हतप्रभ थी। जबकि मैं ”याचक” को भी बिना आयु, पात्रता, शारीरिक स्थिति आदि देखे बिना, एक ‘सिक्का’ भी नहीं देता था। यहां में अनाम-अनजान युवक को अपने शरीर की ”जीवन रक्षक रक्त” जैसी चीज देने के लिए फौरन तैयार हो गया था, जबकि मेरा बेटा व बेटी दोनों घर पर बीमार थे।

पाठकजनों!! मैंने महसूस किया कि मेरा ये निर्णय ‘मौलिक’ नहीं था, बल्कि ‘र्इश्वरीय’ आदेश था। जो उस ‘खुदा’ के ‘बन्दे’ की मदद करने के लिए मुझे प्रेरित कर रहा था, इसका तात्पर्य था कि ‘र्इश्वर-अल्लाह’ में या तो अच्छी ‘दोस्ती’ है या फिर ये एक ही ”सर्वशक्तिमान सत्ता” के दो नाम हैं!
मैंने अपने बाजू के बटन खोलकर जैसे ही ऊपर किये, मेरे हाथ में बंधा मोटा ”कलावा” देखकर उन भार्इयों का चेहरा उतर गया। मैंने उनके चेहरे के भाव पढ़ते हुए उनसे पूछा क्या हुआ भार्इ?
उनमें से एक भार्इ बोला-भार्इ जान! क्या आप हिन्दू हैं?
बिल्कुल! मैं शुद्ध शाकाहारी हिन्दू हूँ-मैंने कहा!
”किसी ‘मुफ्ती’ ने कोर्इ ‘फतवा’ तो जारी नहीं किया है, कि किसी ‘हिन्दू’ का रक्त ‘मुस्लिम’ के लिए हराम है?” क्योकि ऐसी कोर्इ जानकारी मुझे नहीं है। मैंने नर्स को ब्लड लेने से रोकते हुए कहा!
नहीं भार्इ जान! शायद आपको नहीं मालूम कि हम ‘मुस्लिम’ हैं-उसने सकुचाते हुए कहा!
अरे भार्इ! आप ‘इन्सान’ हो ना! मैं इन्सान को रक्त दे रहा हूं किसी जाति-धर्म को नहीं। मैं तो एक बार एक जानवर (कुतिया) को बचाने के लिए गहरे कुएं में रस्सी के सहारे उतर कर उसे निकाल लाया था। आप तो इन्सान हैं।
भार्इ जान! हमें आपका खून लेने में कोर्इ दिक्कत नहीं है, हमने तो सोचा था, शायद आपको नहीं पता हम मुस्लिम हैं-उसका भार्इ बोला!
नर्स ने ‘क्रास चेक’ करने के लिए मेरा ब्लड ले लिया और मैं अपने बेटे की रिपोर्ट दिखाने डाक्टर के चैम्बर की तरफ चला गया।
मेरे बेटे की ‘रिपोर्ट’ व मेरे ब्लड की ‘क्रास रिपोर्ट’ दोनों नार्मल थी, मेरे चेहरे पर सुकून के भाव थे और मैं उन तीनों के भार्इ, (जिसका नाम ”बाबर” था) को ब्लड देने के लिए ‘ब्लड बैंक’ की तरफ बढ़ गया।
bloodपाठकजनों! रक्त-रहमत है खुदा की! सैकड़ों व्यक्ति दुर्घटना इत्यादि में रक्त के अभाव में मर जाते हैं। हम किसी का ‘रक्त देकर’ किसी की जान बचा सकते हैं, और किसी का ‘रक्त बहाकर’ किसी की जान ले भी सकते हैं। निर्णय हमारे हाथों में है। आओ!! हम जात-पात-ऊंच-नीच-धर्म का भेद मिटाकर रक्तदान करें! अपने क्षेत्र में, मैं शुरूआत कर चूंका हूँ, आपके क्षेत्रों में भी, मैं ऐसी ही पहल की उम्मीद करता हूँ। ताकि जैसे मैं गर्व से कह रहा हूं कि ”बाबर की रगों में हिन्दू का खून दौड़ रहा है” वैसे गर्व से मुस्लिम भार्इ भी कह सकें कि ”एक हिन्दू की रगों में मुस्लिम का खून दौड़ रहा है” अंत में ‘चार लाइनों’ के साथ ब्लॉग समाप्त करता हूँ-
एक  दीया  ऐसा ‘मौहब्बत’ का  जलाया जाये,
जिसका  पडो़सी के घर तक भी उजाला  जाये,

इससे बढ़कर ना कोर्इ ‘पूजा’ ना ‘इबादत’ होगी
कि  किसी  रोते हुए ‘इन्सां’ को  हंसाया जाये।

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