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‘भावना’ ‘कुतर्क’ के सामने हार गईं थी, क्योंकि वो अपनी ‘ईश्वर’ रूपी ‘भावना’ को शब्दों में व्यक्त नहीं कर पायीं थीं। ‘कुतर्क’ जोर-जोर से अटठ्हास कर रहे थे।
कहां है तुम्हारा “ईश्वर” बुलाओ? नही तो शर्त के अनुसार अपनी चोटी-जनेऊ काट डालो!
ये ‘कलिकाल’ का शास्तार्थ था। पूरा सभागार ठहाकों से गूंज रहा था।
दिन छिपने लगा, मंदिरों की घंटियां बजने लगी, ‘भावना’ पूजा को उद्यत होने लगीं, वही सभागार में मदिरा के भरे गिलास आपस में टकराने लगे।
असुरी, सुरा, ‘कुतर्क’ के सर चढ़कर बोलने लगी। चोटी-जनेऊ से खेला जाने लगा। आज द्रोपदी रूपी ‘भावना’ की इज्जत बचाने भगवान आएंगें?
कहां है तुम्हारा “कृष्ण” !! हां हां!! बुलाओ?
ईश्वर के ध्यान में लीन, ‘भावना’ रूपी ‘विद्धानों‘ की आंखों से आंसू बह रहे थे!!
तभी अचानक पांच भीमकाय पहलवान सभागार में प्रवेश करते हैं, और मामला समझते ही चिल्लाते हैं-“इस कलयुग में भगवान नहीं आते, बन्दे आते हैं!” दुष्टों!! और कहकर एक ‘कुतर्क’ के मुंह पर मुक्का जड़ देते हैं, अन्य ‘कुतर्क’ भागने लगते हैं, उन पर भी मुक्कों की बरसात होने लगती है!
कौन है? माई का लालऽऽऽ? जो इन विद्धानों की चोटी-जनेऊ काटने की शक्ति रखता हो? पूरा सभागार उनकी आवाज से थर्रा उठा। सभागार में भगदड़ मच गई। उनका सामना करने के लिए कोई ‘कुतर्क’ तैयार नहीं था।
‘पांचों’ उन ‘विद्वानों’ को सभागार से लेकर बाहर की ओर चल दिये।
वेदों में कहा गया है-‘‘बलंवाव भूयोऽपि ह शतं विज्ञानवतामेको बलवाना कम्पयते‘‘ अर्थात बलशाली बनो, एक बलशाली सौ विद्धानों को कंपा देता है! -संजय कुमार गर्ग
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