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वो ‘साधक’ जीवित था या मृत? (रहस्य-कथा)

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उस घर के सामने भीड़ लगी हुई थी, एक अर्थी तैयार रखी थी। लेकिन उस घर के बाहर गम का नहीं, बल्कि गर्म माहौल था, वहां रोने की आवाजें नहीं बल्कि लड़ने की आवाजें आ रही थी। कुछ व्यक्ति उस घर के सामने खड़े हुये कह रहे थे।
yogi%203.jpgजब तुम्हारे पिता को मरे हुये दो दिन बीत चुके हैं फिर भी, तुम उनका अन्तिम संस्कार क्यों नहीं कर रहे हो?
अरे! मैं तो किसी कार्य से इनके पिता से मिलने गया था, तब मैंने उनका शव पड़ा देखा, ये लोग तो पता नहीं कब तक शव को सजाये रखते-उनमें से एक व्यक्ति बोला!
मेरे पिता मृत नहीं हैं जीवित हैं! वो समाधिस्थ हैं! हम उनका अंतिम संस्कार कैसे कर सकते हैं? एक 14 साल की लड़की पूरे साहस से घर के बाहर खड़ी, उन व्यक्तियों की हर बात का उत्तर दे रही थी। मेरे पिता तीन दिन बाद प्रातः 10 बजे समाधि से उठेगें, किसी को भी उनके शरीर को छूने की अनुमति नहीं है।
अरे ! तीन दिन बाद तो उन्हे मरे हुए पूरे पांच दिन हो जायेंगे, उनका शरीर तो सड़ जायेगा? एक व्यक्ति चिल्लाया।
अंकल! आप तो पिता जी की योग व आध्यात्मिक रूचि से परिचित हैं, आप तो उनके पास योगादि सीखने भी आते थे, फिर भी आप ऐसी बातें कर रहे हैं। पिता जी ने ठीक ही कहा था, मेरे अनुपस्थिती में, मेरे सच्चे-मित्र व शत्रु उजागर हो जायेंगे-बेटी ने उस व्यक्ति की ओर घूरते हुये कहा।
भीड़ बढ़ती देख बेटी ने अपने पिता के ‘योगगुरू’ को फोन कर दिया। योगगुरू थोड़े समय पश्चात ही घर के सामने अपने तीन शिष्यों के सामने उपस्थित थे।
योगाचार्य जी का लम्बा व गठीला बदन, तेजस्वी व रोबदार चेहरा साथ में देव सरीखे शिष्यों को देख कर भीड़ छटने लगी। वो घर के अन्दर जाने से पहले भीड़ से बोले-मैं अपने शिष्य के शरीर का निरीक्षण करके आता हूँ, उसके पश्चात ही मैं आपसे कुछ कहूंगा। आप बाहर ही रहिये।
वे मुख्य द्वार को बन्द करके सीधे उस कमरे मेें पहुंचे जहां उनका शिष्य जमीन पर लेटा हुआ था। शिष्य के सारे बदन पर तेल लगा हुआ था, बराबर में तेल का एक दीपक जल रहा था, शिष्य की पत्नि वहां बेैठी थी। गुरू ने उसकी पत्नि से कहा-तुम्हारे पति ने मुझसे केवल योग सिखा है, मैं ध्यान का उसका गुरू नहीं हूं, परन्तु ध्यान के प्रति उसकी रूचि से मैं भलिभांति परिचित हूंँ। परन्तु क्या उन्होने समाधि में जाने से पहले बताया था कि वे इतने दिनों के लिये क्यों समाधिस्थ हो रहे हैं।

yogi%202.jpgजी! उन्होने बताया था, कि वे पांच दिनों के लिये हिमालय के एक दुर्गम क्षेत्र में अपने आध्यात्मिक गुरू के पास जा रहें हैं, वो क्षेत्र इतना दुर्गम है कि वहां पर स्थूल शरीर से जाना संभव ही नहीं है, वहां पर उनके गुरू ‘सूक्ष्म शरीर’ में निवास करते हैं। जो कई वर्षो पहले अपना ‘स्थूल शरीर’ त्याग चुके हैं अर्थात दिवंगत हो चुके हैं।
योगाचार्य जी! ने कुछ नहीं कहा, उन्होंने शिष्य का चेहरा देखा, उस पर एक चमक थी, शरीर को छुआ वो बिल्कुल ठंडा था, नब्ज, धड़कन सब बन्द थी। योगगुरू चिंतित थे, उन्हे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वे किस आधार पर एक ‘‘क्लीनिकल डेड‘‘ को समाधिस्थ घोषित करें। अचानक उनकी दृष्टि शिष्य के चेहरे पर पड़ी, गुरू जी ने शिष्य के चेहरे पर हाथ फेरा और उसकी पत्नि से पूछा- तुम्हारे पति कितने दिनों के अन्तर से सेविंग करते हैं?
उन्होंने समाधि में जाने से पहले सेविंग की थी, और वे लगभग रोज सेविंग करते हैं-पत्नि ने उत्तर दिया!
क्या उनकी रोज दाड़ी बढ़ती थी? गुरू जी ने पूछा।
जी ! पत्नि ने उत्तर दिया।
हे ईश्वर! तेरी लीला अपरम्पार है!!! वे जोर से चिल्लाये और जमीन पर बैठ गये।
बेटी! तुम्हारे पति वास्तव में समाधिस्थ हैं, क्योंकि मृत व जीवित व्यक्तियों के बाल आदि बढ़ते रहते हैं, केवल समाधिस्थ व्यक्ति में ही इन चीजों का बढ़ना रूक सकता है। तुम्हारे पति की दो दिन बाद भी दाड़ी बिल्कुल नहीं बढ़ी है, जो इस बात का प्रमाण है कि वास्तव मेें वो समाधिस्थ हैं।
वे तेजी से बाहर आये और भीड़ से बोले-मेरा शिष्य समाधि में है कोई उसके शरीर को छूने का प्रयास न करें! अन्यथा मुझसे बुुरा कोेई नहीं होगा और उनके शिष्यों ने भीड़ को वहां से भगा दिया।
किसी ने पुलिस को सूचना दे दी, पुलिस की जीप भी वहां आ पहुंची।
पुलिस अधिकारी आगे बढ़ा, तो गुरू जी ने उससे पूछा? जब पंजाब राज्य में एक ‘‘संत‘‘ का शरीर पिछले कई महीनों से सुरक्षित रखा जा सकता है, और उसे ‘जेड श्रेणी‘ की सुरक्षा दी जा सकती है, क्योंकि, उनके शिष्यों का दावा है कि वे समाधिस्थ हँ। तो क्या मेरे शिष्य के शरीर को पांच दिन रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती? पुलिस अधिकारी मौन हो गये, उन्होंने शिष्य के शरीर को देखने की इच्छा प्रकट की।
पुलिस अधिकारी ने शरीर को देखा और जैसे ही उसके शरीर को छूने का प्रयास किया, गुरू जी ने तुरन्त उनका हाथ पकड़ लिया और अधिकारी से कहा-शरीर को केवल छूना है चुटकी या कोई आघात शरीर पर मत कर देना। ‘‘क्योंकि सोते हुये या समाधिस्थ व्यक्ति को अचानक झिझोड़ने या उस के शरीर पर आघात करने से सोये हुये या समाधिस्थ व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है, क्योंकि दोनों ही स्थितियों में व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर न्यूनाधिक रूप से स्थूल शरीर से बाहर गमन कर रहा होता है और एक अदृश्य डोर से स्थूल शरीर से बंधा होता है। अचानक आघात पहुंचने पर उसका सूक्ष्म शरीर तेजी से स्थूल शरीर में प्रवेश करने के लिए भागता है, इस भाग दौड़ में कभी-कभी दोनों शरीरों को जोड़ने वाली सूक्ष्म डोर टूट जाती है, जिससे उस व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।‘‘
पुलिस अधिकारी बिना उत्तर दिये वहां से चले गये और भीड़ को अपने घर जाने व साधक के शरीर को न छूने की चेतावनी देना नहीं भूले।
पांचवे दिन घर के बाहर मीडिया वालों से लेकर, पड़ोसियों व नगरवासियों तक का भारी समूह एकत्र था। सभी 10 बजने की प्रतीक्षा कर रहे थे। गुरू जी भी वहां उपस्थित थे। जैसे ही 10 बजे समाधिस्थ योगी के पैरों की उंगलियां हिली, पैंरों से लेकर जंघाओं तक के रोये (बाल) खड़े होने लगे, हाथों की उंगलियां हिली, हाथों के भी रोये खड़े होने लगे। धीरे-धीरे योगी ने आंखे खोली और आंखों में ही योगगुरू को प्रणाम किया ‘कुछ मिनटों’ बाद योगी धीरे-धीरे उठ बैठे और अपने गुरू के चरण स्पर्श किये। योगी की पत्नि-बेटी प्रसन्नता से उससे चिपट गयी। वह धीरे-धीरे खड़ा हुआ और अपनी बेटी-पत्नि-गुरू के साथ बाहर आया। जिन्दाबाद के नारों व कैमरे की फ्लैश लाइटों के बीच उसने जनसमुदाय व शुभचिन्तकों का अभिवादन किया, विरोधी आंखे फाड़े व आंख चुराये वहां से निकल लिये। डाक्टरों की टीम स्वास्थ्य की जांच करने के लिए योगी के पीछे-पीछे लगी थी। क्योंकि योगी ने सिद्ध जो कर दिया था, कि “जहां पर भौतिकवाद की सीमाऐं समाप्त होती हैं वहां से अध्यात्मवाद की सीमाऐं प्रारम्भ होती हैं।”

शरीर” को “स्थूल शरीर” से पृथक कर “सूक्ष्म शरीर” से कहीं भी आ जा सकता है। उपरोक्त सिद्धि का वर्णन अष्टांग योग, योग वशिष्ठ, सौदर्य लहरी व व्यास भाष्य आदि जैसे महान योग प्रधान ग्रन्थों में विस्तार से किया गया है।]
लेखक-संजय कुमार गर्ग

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